Wednesday, October 27, 2010

शीघ्र रजोनिवृति

उन चार जीन का पता लगा लिया है जो महिलाओं में समय से पूर्व रजोनिवृत्ति यानी मेनोपॉज़ के लिए ज़िम्मेदार हैं.बीस में से एक महिला 46 साल की उम्र से पहले ही रजोनिवृत्ति का शिकार हो जाती है. यानी इस आयु से एक दशक पहले से ही उसकी गर्भधारण की संभावना में कमी आ जाती है.ह्मूमैन मोलेक्यूलर जेनेटिक्स में छपे इस अध्ययन में कहा गया है कि चार जीन की मिश्रण इस स्थिति को बढ़ा देता है और एक सरल से परीक्षण से इसका पता...
डॉक्टर बहुत जल्द एक टेस्ट के जरिए इस बात का सही अनुमान लगा पाएंगे कि किसी महिला को किस उम्र में रजोनिवृत्ति होगी। ईरान में 12 साल तक 266 महिलाओं पर किए गए शोध में पाया गया कि एएमएच नामक हार्मोन के स्तर को मापने से रजोनिवृत्ति की उम्र के बारे में पता लगाया जा सकता है।

यदि आगे के अध्ययनों में इस बात की पुष्टि हो जाती है तो विशेषकर उन महिलाओं के लिए यह उपयोगी साबित होगा जिन्हें जल्दी रजोनिवृत्ति हो सकती है। शोध के दौरान 20 से 49 वर्ष की 266 महिलाओं पर 12 साल तक तीन-तीन साल के अंतराल पर खून के नमूने और शारीरिकि परीक्षण के जरिए नजर रखी गई।
यौवन के दौरान, एक लड़की menstruating शुरू होता है और इस तरह उपजाऊ बन जाता है. वह तो एक और 30 से 40 साल के लिए उसकी अवधि और उस समय वह बच्चों को हो सकता है के दौरान जारी है. रजोनिवृत्ति माहवारी की समाप्ति, जिसका अर्थ है महिला द्वारा चिह्नित है अब गर्भ धारण करने में सक्षम है. परिवर्तन हार्मोन शरीर द्वारा निर्मित एस्ट्रोजन में गिरावट के कारण होता है.
वैज्ञानिकों ने उन चार जीन का पता लगा लिया है जो महिलाओं में समय से पूर्व रजोनिवृत्ति यानी मेनोपॉज़ के लिए ज़िम्मेदार हैं.बीस में से एक महिला 46 साल की उम्र से पहले ही रजोनिवृत्ति का शिकार हो जाती है. यानी इस आयु से एक दशक पहले से ही उसकी गर्भधारण की संभावना में कमी आ जाती है.ह्मूमैन मोलेक्यूलर जेनेटिक्स में छपे इस अध्ययन में कहा गया है कि चार जीन की मिश्रण इस स्थिति को बढ़ा देता है और एक सरल से परीक्षण...
प्रजनन क्षमता में रजोनिवृत्ति से दस साल पहले कमी आने लगती है. वैज्ञानिकों ने उन चार जीन का पता लगा लिया है जो महिलाओं में समय से पूर्व रजोनिवृत्ति यानी मेनोपॉज़ के लिए ज़िम्मेदार हैं.बीस में से एक महिला 46 साल की उम्र से पहले ही रजोनिवृत्ति का शिकार हो जाती है. यानी इस आयु से एक दशक पहले से ही उसकी गर्भधारण की संभावना में कमी आ जाती है. ह्मूमैन मोलेक्यूलर जेनेटिक्स में छपे इस अध्ययन में कहा गया है...
रजोनिवृत्ति की औसत उम्र तक आपूर्ति महिलाओं के अंडाशय. POF एक प्राकृतिक रजोनिवृत्ति के रूप में ही, में नहीं है कि कम उम्र में अंडाशय, अंडे की हानि, या अंडाशय हटाने की शिथिलता एक प्राकृतिक शारीरिक घटना नहीं है. बांझपन इस स्थिति का परिणाम है, और सबसे अधिक चर्चा की यह से उत्पन्न समस्या है, लेकिन वहाँ अतिरिक्त समस्या के स्वास्थ्य निहितार्थ हैं, और अध्ययन चल रहे हैं. उदाहरण के लिए, ऑस्टियोपोरोसिस या कम अस्थि घनत्व POF एस्ट्रोजेन की कमी की वजह से लगभग सभी महिलाओं को प्रभावित करता है.वहाँ भी है हृदय रोग का एक बढ़ा जोखिम, है रोग है, और अन्य ऑटो प्रतिरक्षा विकार के रूप में हाइपोथायरायडिज्म. एस्ट्रोजन और FSH, जो दिखाना है कि अंडाशय नहीं कर रहे हैं अब एस्ट्रोजन उत्पादन और उपजाऊ अंडे विकसित करके FSH परिसंचारी का जवाब देने के उच्च स्तर का असामान्य रूप से निम्न स्तर से परिभाषित किया गया है. शुरुआत की आयु किशोर वर्ष के रूप में के रूप में शुरू हो सकती है, लेकिन व्यापक रूप से भिन्न होता है.अगर एक लड़की को माहवारी शुरू होता है कभी नहीं, यह प्राथमिक डिम्बग्रंथि विफलता कहा जाता है. POF. 40 की उम्र में कटौती के रूप में चुना सूत्री बंद था POF के निदान के लिए.इस उम्र में कुछ मनमाने ढंग से चुना था, समारोह में सभी महिलाओं के अंडाशय समय के पतन के रूप में, लेकिन एक जरूरत उम्र के लिए समय से पहले रजोनिवृत्ति के असामान्य से सामान्य राज्य रजोनिवृत्ति अंतर चुना जाएगा.समय से पहले डिम्बग्रंथि विफलता लेकिन अक्सर यह घटक है कि यह सामान्य रजोनिवृत्ति से अलग है.40 वर्ष की आयु, महिलाओं के लगभग एक प्रतिशत की POF. [3] POF से पीड़ित महिलाओं को आमतौर पर रजोनिवृत्ति के लक्षण है, जो आम तौर पर बड़े रजोनिवृत्त महिलाओं में पाया लक्षणों से भी ज्यादा गंभीर हो अनुभव है.

Causes कारण

POF के कारण आम तौर पर अज्ञातहेतुक है. POF के कुछ मामलों autoimmune विकार को जिम्मेदार ठहराया, कर रहे हैं ऐसे टर्नर सिंड्रोमऔर नाजुक एक्स सिंड्रोम के रूप में आनुवंशिक विकारों के लिए दूसरों.कई मामलों में, कारण निर्धारित नहीं किया जा सकता है. रसायन चिकित्सा और कैंसर विकिरण उपचार के लिए कभी कभी डिम्बग्रंथि विफलता का कारण बन सकती. प्राकृतिक रजोनिवृत्ति में अंडाशय के लिए आम तौर पर हार्मोन का स्तर कम उत्पादन जारी है, लेकिन कीमोथेरेपी या विकिरण में POF प्रेरित, अंडाशय प्रायः सभी कार्य और हार्मोन के स्तर बंद हो जाएगा एक महिला के अंडाशय है हटा दिया गया है उन लोगों के समान ही होगा. महिला जो पड़ा है उनकी ट्यूब बंधे हैं, या जो hysterectomies पड़ा है, रजोनिवृत्ति के लिए कई औसत से पहले साल के माध्यम से जाओ, अंडाशय की संभावना को कम रक्त के प्रवाह के कारण करते हैं. परिवार के इतिहास और डिम्बग्रंथि या अन्य श्रोणि जीवन में पहले ही सर्जरी भी POF के लिए जोखिम कारक के रूप में फंसा रहे हैं. दो समय से पहले डिम्बग्रंथि विफलता का बुनियादी प्रकार हैं. 1 प्रकरण) कहाँ हैं कोई बाकी के रोम और 2 के मामले में कुछ) जहां के रोम का एक प्रचुर संख्या में हैं.पहली स्थिति में आनुवांशिक बीमारियों का कारण बनता है, autoimune क्षति, chemotherpy, श्रोणि क्षेत्र, शल्य चिकित्सा, endometriosis और संक्रमण के विकिरण शामिल हैं.ज्यादातर मामलों में कारण अज्ञात है. दूसरे मामले में एक कारण अक्सर autoimmune डिम्बग्रंथि रोग जो परिपक्व होने के रोम नुकसान है, लेकिन पत्तियों मौलिक रोम बरकरार.इसके अलावा, कुछ महिलाओं में FSH FSH रिसेप्टर साइट से बँधे हैं, लेकिन निष्क्रिय हो सकता है.(ई) या एक GnRH के साथ साथ अंतर्जात FSH स्तर एक रिसेप्टर साइटों को कम करके और मुक्त exogenous रीकॉम्बीनैंट FSH के साथ इलाज कर रहे हैं रिसेप्टर्स और सामान्य कूप विकास और ovulation सक्रिय कर सकते हो.

रजोनिवृत्ति क्या है?

यौवन के दौरान, एक लड़की menstruating शुरू होता है और इस तरह उपजाऊ बन जाता है. वह तो एक और 30 से 40 साल के लिए उसकी अवधि और उस समय वह बच्चों को हो सकता है के दौरान जारी है. रजोनिवृत्ति माहवारी की समाप्ति, जिसका अर्थ है महिला द्वारा चिह्नित है अब गर्भ धारण करने में सक्षम है. परिवर्तन हार्मोन शरीर द्वारा निर्मित एस्ट्रोजन में गिरावट के कारण होता है.


कुछ महिलाओं को उनके लक्षण मिल भी अपने स्वयं के और 10% के आसपास पर से निपटने के लिए गंभीर चिकित्सा सहायता चाहते हैं. वहाँ विभिन्न हार्मोन प्रतिस्थापन चिकित्सा सहित उपचार उपलब्ध हैं. Antidepressants भी मदद करने के लिए कई महिलाओं को रजोनिवृत्ति के माध्यम से मिल जाना जाता है

रजोनिवृत्ति सभी महिलाओं में भी होता है.

समय आम तौर पर अचानक रोक नहीं है, लेकिन धीरे – धीरे और कम से कम लगातार हो जाते हैं. महिलाओं को आमतौर पर 50 और 60 की उम्र के बीच रजोनिवृत्ति का अनुभव है, लेकिन यह बहुत पहले हो सकता है.

क्या लक्षण हैं?

अपने काल के अलावा रोक, ज्यादातर महिलाओं को रजोनिवृत्ति के लिए अग्रणी के लक्षणों का अनुभव. एन एच एस एक अवलोकन प्रदान करता है:

गर्म flushes सबसे सामान्य लक्षण हैं. पीड़ित गर्मी की एक अचानक, कभी कभी overpowering अनुभूति होती है, आमतौर पर ऊपरी शरीर के एक चेहरे, छाती या गर्दन के रूप में, भाग में शुरू करने का अनुभव, और फैल गया. ये एक वृद्धि की दिल की दर और भी कारण रात के दौरान हो सकता है हो सकता है.

सामान्य में सो रही समस्याएं रजोनिवृत्ति से गुजर रही महिलाओं में आम है.

cystitis के रूप में मूत्र पथ के संक्रमण, में वृद्धि हुई है, हालत को जोड़ा गया है.

योनि सूखापन, खुजली और सामान्य असुविधा भी एक लक्षण हो सकता है.

उपचार वहाँ क्या कर रहे?

कुछ महिलाओं को उनके लक्षण मिल भी अपने स्वयं के और 10% के आसपास पर से निपटने के लिए गंभीर चिकित्सा सहायता चाहते हैं. वहाँ विभिन्न हार्मोन प्रतिस्थापन चिकित्सा सहित उपचार उपलब्ध हैं. Antidepressants भी मदद करने के लिए कई महिलाओं को रजोनिवृत्ति के माध्यम से मिल जाना जाता है.

दवा नेट ऐलेन Magee, सही पोषण के अनुसार भी लक्षण को कम करने पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव हो सकता है. वह की सिफारिश की गई:

1. खाने और अधिक Tofu और सोया

2. खाने के लिए अधिक फल और सब्जियां

3. खाने के लिए अधिक बार बीन्स

4. ठीक वसा के अतिरिक्त खाओ

5. चुनें बुद्धिमानी से अपने पेय पदार्थ

6. एक तृण खानेवाला एक Gorger नहीं रहो

7. खाने के लिए कैल्शियम युक्त खाद्य हर दिन

8. से बचने के उच्च वसा, उच्च चीनी खाद्य पदार्थ

9. जोड़ें अपने आहार के लिए Flaxseed

10. व्यायाम, व्यायाम, व्यायाम

जब एक औरत एक वर्ष के लिए उसकी अवधि नहीं पड़ा है, वह रजोनिवृत्त माना जाता है. इस बिंदु से, लक्षण गायब हो गया है या बहुत milder बन जाते हैं.


Tuesday, May 25, 2010

अर्धनारीश्वर और वाणभट्ट की आत्मकथा


‘मैं शिव हूँ में हज़ारी प्रसाद द्विवेदी के उपन्यास ‘वाणभट्ट की आत्मकथा’ के आधार पर किसी व्यक्ति में पुरुष और स्त्री के द्वंद्व का भारतीय दर्शन के दृष्टिकोण से विश्लेषण किया है। में वर्णित दर्शन की व्याख्या से पहले इस उपन्यास के प्रासंगिक अंशों को उद्धृत कर देना मैं अधिक उपयुक्त समझता हूँ। उपन्यास के इन अंशों में आए संवाद इतने जीवंत और मर्मभेदी हैं कि वे पाठकों के समक्ष अपने आशय को स्वत: स्पष्ट कर देते हैं। फिर भी, इसके दर्शन की व्याख्या करने का प्रयास करूँगा।

[1]

“एक बात पूछूँ, माता?”

“पूछो।”

“बाबा ने कल मुझसे जो कुछ कहा, उसका क्या अभिप्राय है?”

“बाबा से अधिक मैं क्या बता सकती हूँ।”

“प्रवृत्तियों की पूजा करने का क्या तात्पर्य हो सकता है?”

“बाबा ने क्या कहा है?”

“बाबा ने कहा है कि प्रवृत्तियों से डरना भी गलत है, उन्हें छिपाना भी ठीक नहीं और उनसे लज्जित होना बालिशता है। फिर उन्होंने कहा है कि त्रिभुवन-मोहिनी ने जिस रूप में तुझे मोह लिया है, उसी रूप की पूजा कर, वही तेरा देवता है। फिर विरतिवज्र से उन्होंने कहा—इस मार्ग में शक्ति के बिना साधना नहीं चल सकती। ऐसी बहुत-सी बातें उन्होंने बताईं जो अश्रुतपूर्व थीं। क्यों अंब, शक्ति क्या स्त्री को कहते हैं? और स्त्री में क्या सचमुच त्रिभुवन-मोहिनी का वास होता है?”

“देख बाबा, तू व्यर्थ की बहस करने जा रहा है। बाबा ने जो कुछ कहा है वह पुरुष का सत्य है। स्त्री का सत्य ठीक वैसा ही नहीं है।”

“उसका विरोधी है, मात:?”

“पूरक है रे! पूरक अविरोधी हुआ करता है!”

“मैं समझ नहीं सका।”

“समझ जाएगा, तेरे गुरु प्रसन्न हैं, तेरी कुंडलिनी जाग्रत है, तुझे कौल-अवधूत का प्रसाद प्राप्त है, उतावला न हो। इतना याद रख कि पुरुष वस्तु-विच्छिन्न भावरूप सत्य में आनंद का साक्षात्कार करता है, स्त्री वस्तु-परिगृहीत रूप में रस पाती है। पुरुष नि:संग है, स्त्री आसक्त; पुरुष निर्द्वंद्व है, स्त्री द्वंद्वोन्मुखी; पुरुष मुक्त है, स्त्री बद्ध। पुरुष स्त्री को शक्ति समझकर ही पूर्ण हो सकता है; पर स्त्री, स्त्री को शक्ति समझकर अधूरी रह जाती है।”

“तो स्त्री की पूर्णता के लिए पुरुष को शक्तिमान मानने की आवश्यकता है न, अंब?”

“ना। उससे स्त्री अपना कोई उपकार नहीं कर सकती, पुरुष का अपकार कर सकती है। स्त्री प्रकृति है। वत्स, उसकी सफलता पुरुष को बाँधने में है, किंतु सार्थकता पुरुष की मुक्ति में है।” मैं कुछ भी नहीं समझ सका। केवल आँखें फाड़-फाड़कर महामाया की ओर देखता रहा। वे समझ गईं कि मैंने कहीं मूल में ही प्रमाद किया है। बोलीं, “नहीं समझ सका न? मूल में ही प्रमाद कर रहा है, भोले! तू क्या अपने को पुरुष समझ रहा है और मुझे स्त्री? यही प्रमाद है। मुझमें पुरुष की अपेक्षा प्रकृति की अभिव्यक्ति की मात्रा अधिक है, इसलिए मैं स्त्री हूँ। तुझमें प्रकृति की अपेक्षा पुरुष की अभिव्यक्ति अधिक है, इसलिए तू पुरुष है। यह लोक की प्रज्ञप्तिप्रज्ञा है, वास्तव सत्य नहीं। ऐसी स्त्री प्रकृति नहीं है, प्रकृति का अपेक्षाकृत निकटस्थ प्रतिनिधि है और ऐसा पुरुष प्रकृति का दूरस्थ प्रतिनिधि है। यद्यपि तुझमें तेरे ही भीतर के प्रकृति-तत्व की अपेक्षा पुरुष-तत्व अधिक है; पर वह पुरुष-तत्व मेरे भीतर के पुरुष-तत्व की अपेक्षा अधिक नहीं है। मैं तुझसे अधिक नि:संग, अधिक निर्द्वंद्व और अधिक मुक्त हूँ। मैं अपने भीतर की अधिक मात्रावाली प्रकृति को अपने ही भीतरवाले पुरुष-तत्व से अभिभूत नहीं कर सकती। इसलिए मुझे अघोरभैरव की आवश्यकता है। जो कोई भी पुरुष प्रज्ञप्तिवाला मनुष्य मेरे विकास का साधन नहीं हो सकता।”

“और अघोरभैरव को आपकी क्या आवश्यकता है?”

“मुझे मेरी ही अंत:स्थिता प्रकृति रूप में सार्थकता देना। वे गुरु हैं, वे महान हैं, वे मुक्त हैं, वे सिद्ध हैं। उनकी बात अलग है।”

(षष्ठ उच्छ्वास से)

[2]

महामाया ने ही फिर शुरू किया—“तो तू मेरी बात नहीं मानती। हाँ बेटी, नारीहीन तपस्या संसार की भद्दी भूल है। यह धर्म-कर्म का विशाल आयोजन, सैन्य-संगठन और राज्य-व्यवस्थापन सब फेन-बुदबुद की भाँति विलुप्त हो जाएँगे; क्योंकि नारी का इसमें सहयोग नहीं है। यह सारा ठाठ-बाट संसार में केवल अशांति पैदा करेगा।”

भट्टिनी ने चकित की भाँति प्रश्न किया—“तो माता, क्या स्त्रियाँ सेना में भरती होने लगें, या राजगद्दी पाने लगें, तो यह अशांति दूर हो जाएगी?”

महामाया हँसी। बोलीं, “सरला है तू, मैं दूसरी बात कह रही थी। मैं पिंडनारी को कोई महत्वपूर्ण वस्तु नहीं मानती। तुम्हारे इस भट्ट ने भी मुझसे पहली बार इसी प्रकार प्रश्न किया था। मैं नारी-तत्व की बात कह रही हूँ रे! सेना में अगर पिंड-नारियों का दल भरती हो भी जाए तो भी जब तक उसमें नारी-तत्व की प्रधानता नहीं होती, तब तक अशांति बनी रहेगी।”

मेरी आँखें बंद थीं, खोलने का साहस मुझमें नहीं था। परंतु मैं कल्पना के नेत्रों से देख रहा था कि भट्टिनी के विशाल नयन आश्चर्य से आकर्ण विस्फारित हो गए हैं। ज़रा आगे झुककर उन्होंने कहा, “मैं नहीं समझी।”

महामाया ने दीर्घ नि:श्वास लिया। फिर थोड़ा सम्हलकर बोलीं, “परम शिव से दो तत्व एक ही साथ प्रकट हुए थे—शिव और शक्ति। शिव विधिरूप हैं और शक्ति निषेधरूपा। इन्हीं दो तत्वों के प्रस्पंद-विस्पंद से यह संसार आभासित हो रहा है। पिंड में शिव का प्राधान्य ही पुरुष है और शक्ति का प्राधान्य नारी है। तू क्या इस मांस-पिंड को स्त्री या पुरुष समझती है? ना सरले, यह जड़ मांस-पिंड न नारी है, न पुरुष! वह निषेधरूप तत्व ही नारी है। निषेधरूप तत्व, याद रख। जहाँ कहीं अपने-आपको उत्सर्ग करने की, अपने-आपको खपा देने की भावना प्रधान है, वहीं नारी है। जहाँ कहीं दु:ख-सुख की लाख-लाख धाराओं में अपने को दलित द्राक्षा के समान निचोड़कर दूसरे को तृप्त करने की भावना प्रबल है, वहीं नारी-तत्व है, या शास्त्रीय भाषा में कहना हो, तो शक्ति-तत्व है। हाँ रे, नारी निषेधरूपा है। वह आनंद-भोग के लिए नहीं आती, आनंद लुटाने के लिए आती है। आज के धर्म-कर्म के आयोजन, सैन्य-संगठन और राज्य-विस्तार विधि-रूप हैं। उनमें अपने-आपको दूसरों के लिए गला देने की भावना नहीं है, इसीलिए वे एक कटाक्ष पर ढह जाते हैं, एक स्मित पर बिक जाते हैं। वे फेन-बुदबुद की भाँति अनित्य हैं। वे सैकतसेतु की भाँति अस्थिर हैं। वे जल-रेखा की भाँति नश्वर हैं। उनमें अपने-आपको दूसरों के लिए मिटा देने की भावना जब तक नहीं आती, तब तक वे ऐसे ही रहेंगे। उन्हें जब तक पूजाहीन दिवस और सेवाहीन रात्रियाँ अनुतप्त नहीं करतीं और जब तक अर्ध्यदान उन्हें कुरेद नहीं जाता, तब तक उनमें निषेधरूपा नारी तत्व का अभाव रहेगा और तब तक वे केवल दूसरों को दु:ख दे सकते हैं।”

(एकादश उच्छ्वास से)

मोबाईल फोन या संडास

संडास या मोबाईल फोन!

आज सुबह सुबह एक अंग्रेजी चिट्ठे पर एक विदेशी की टिप्पणी दिखी कि सन २०१० में हिन्दुस्तान में जितने संडास हैं उनसे अधिक मोबाईल फोन हैं. इस खबर पर कई लोगों ने काफी चुटकी ली एवं कई लोगों ने हंसी की तो मैं ने एकदम टिप्पणी की “क्या आप लोगों को लगता है कि हिन्दुस्तान में लोग जान बूझकर संडास बनाने से किनारा करते हैं”.

मैं ने कुछ और भी बातें लिखीं जिसका असर यह हुआ कि मूल टिप्पणी जिसने की थी उसने तुरंत एक माफीनामा मुझे भेजा और उस पूरी चर्चा को हटा दिया. उसके स्थान पर मेरी टिप्पणी छाप दी कि “यदि मोबाईल जिस कीमत में खरीदा जा सकता है उस कीमत में संडास बनाने की सहूलियत होती तो आज हर हिन्दुस्तानी के पीछे कम से कम दो संडास होते”. मुझे खुशी है कि मेरी बात उन लोगों को समझ में आ गई.

समस्या यह है कि हिन्दुस्तान के विरुद्ध कोई भी देशीविदेशी व्यक्ति कोई टिप्पणी करता है तो उसका विश्लेषण करने के बदले हम लोग तुरंत उस बात को मान लेते हैं. फलस्वरूप निराशाजनक नजरिया आगे बढता जाता है. निम्न कथन जरा देखें:

  1. हिन्दुस्तानी लोग सुधर नहीं सकते
  2. हिन्दुस्तानी लोग सुधरना नहीं चाहते
  3. हिन्दुस्तान में उन्नति इसलिये नहीं हो रही कि जनता विकास नहीं चाहती
  4. हिन्दुस्तानियों को भ्रष्टाचार की आदत लग गई है

सवाल यह है कि यदि भारत का असली स्वरूप हमेशा ऐसा रहा है क्या. यदि नहीं तो हम लोग क्यों ऐसे प्रस्तावों को चुपचाप मान लेते हैं?

दर असल जो देश सोने की चिडिया था वह २५०० साल तक नुचतापिटता और लुटता रहा, तब कहीं इस स्थिति में पहुंचा है. देश १९४७ में आजाद हुआ तो हर तरह से कंगाल था. लेकिन जिन लोगों ने पिचली ६ दशाब्दियों में हुए बदलाव को देखा है वे जानते हैं कि एक देश जिसके करोडों वासियों को मुगलों ने और अंत में अंग्रेजों ने नंगा करके छोडा था, वह पुन: एक विश्व शक्ति बनता जा रहा है. २५०० साल की लूट को ६० साल में काफी हद तक वापस पा लेना अपने आप में एक अद्भुत कार्य है.

यदि आप और मैं जीजान से और देशभक्ति के साथ लगे रहें तो सन २०२५ तक हम निश्चित रूप से एक महाशक्ति बन जायेंगे और २०५० तक वापस सोने की चिडिया बन जायेंगे.

यौनाकर्षण, स्त्रियां, बलात्कार !


आज समाज हर और यौनाकर्षण से भरा हुआ है. आलपिन से लेकर कारों तक हर चीज स्त्री के यौनाकर्षण के आधार पर बेची जाती है. ऐसे स्त्रियों की भी कोई कमी नहीं है जो नाचगाने (केबरे), पिक्चर, विज्ञापन, आदि कि लिये अपने आपको बडे आराम से अनावृत करती हैं एवं मादक मुद्राओं में चित्रित होती हैं.

Dancer


साथ में दिये गये दो चित्रों को देखें. दोनों ही स्त्रियां हैं एवं दोनों ही नृत्य कर रही हैं. लेकिन क्या दर्शक के ऊपर पहले चित्र का वही असर होता है जो दूसरे चित्र का है. याद रखें कि मैं ने एक बहुत ‘सामान्य’ चित्र यहां दिया है. वास्तव में विज्ञापनों, कलेंडरो, टीवी, पिक्चर आदि में जिस तरह के अनावृत स्त्री-चित्र दिखते हैं उनको सारथी पर नहीं दिखाया जा सकता. ऐसे कई केलेंडर भारत में उपलब्ध हैं जिनमें स्त्रियों के शरीर पर थोडे से धागों के अलावा और कुछ नहीं है. इन स्त्रियों को मारपीट कर, या जबर्दस्ती अगवा करके नहीं लाया गया बल्कि वे अपनी इच्छा से इन कलेंडरों के लिये पोज देती हैं. बल्कि आजकल इन लोगों में बडी होड लगी है कि कौन अपने आपको अधिकतम अनावृत कर सकती हैं.

यदि आप किसी प्रोफेशनल महाविद्यालय में चले जाये तो भी आपको लडकियां इस तरह की नुमाईश करती नजर आयेंगी कि आपकी आंखें शरम से झुक जायें. मेरे दोनों बच्चों के महाविद्यालयीन कार्यक्रमों में मैं ने यह बात नोट की थी. मैं ने अपनी बेटी से पूछा भी (हमारे घर में एक खुला माहौल है) कि लडकियां क्यों इस तरह अपने आप को अनावृत कर रही हैं तो उसने फट से उत्तर दिया कि डेडी वे लोग साफ कहते हैं कि एक मौका मिला है कि अपने पुरुष साथियों को "लुभाने" का. कैसा लुभाव — साफ है कि यौनाकर्षण द्वारा सिर्फ यौन-लुभाव ही पैदा होगा. Bharatnatyamयह न भूलें कि ये लडकियां अपने यौनाकर्षण को समझ कर अपनी इच्छा से अपने आप को अनावृत कर रहीं है. ऐसा करने के लिये किसी पुरुष ने उन पर दबाव नहीं डाला है. वे नर्सरी के बच्चे नहीं है, अत: वे यह भी जानती हैं कि यौनाकर्षण का अंतिंम पडाव क्या होता है


अब यदि स्त्रियां यह मांग करे कि उनकी नग्नता से पुरुष यौनाकर्षण जरूर महसूस करें लेकिन वे इसका असर अपने जीवन में न होने दे तो यह कैसे हो सकता है. आप हंडिया आग पर चढायें लेकिन यह मांग करते रहें कि पानी गरम न हो तो यह कैसे हो सकता है. यदि आप बारूद पर आग डालें एवं मांग करें कि विस्फोट न हो तो यह कैसी अनहोनी बात है.

आप पूछेंगे कि मैं बलात्कारियों का पक्ष ले रहा हूँ क्या. कदापि नहीं. मैं पहले ही कह चुका हूँ कि बलात्कार के लिये एक ही सजा होनी चाहिये और वह है मृत्युदंड या लिंगछेदन. स्त्री के साथ इतने नीच एवं क्रूर तरीके से पेशा आने वाले व्यकित को किसी भी तरह से बख्शा नहीं जाना चाहिये. वह दया का पत्र नहीं है.

लेकिन इस चित्र का एक पहलू और है जो हम सब को समझना चाहिये. वह है स्त्री की जिम्मेदारी का. मजे की बात यह है कि वे स्त्रियां जो अराजकत्व के स्तर तक "नारी-स्वतंत्रता" की वकालात करती है, वे यौनाकर्षण के मामले में स्त्रियों की सामाजिक जिम्मेदारी के बारे में मौन रहती हैं.