Tuesday, May 25, 2010

यौनाकर्षण, स्त्रियां, बलात्कार !


आज समाज हर और यौनाकर्षण से भरा हुआ है. आलपिन से लेकर कारों तक हर चीज स्त्री के यौनाकर्षण के आधार पर बेची जाती है. ऐसे स्त्रियों की भी कोई कमी नहीं है जो नाचगाने (केबरे), पिक्चर, विज्ञापन, आदि कि लिये अपने आपको बडे आराम से अनावृत करती हैं एवं मादक मुद्राओं में चित्रित होती हैं.

Dancer


साथ में दिये गये दो चित्रों को देखें. दोनों ही स्त्रियां हैं एवं दोनों ही नृत्य कर रही हैं. लेकिन क्या दर्शक के ऊपर पहले चित्र का वही असर होता है जो दूसरे चित्र का है. याद रखें कि मैं ने एक बहुत ‘सामान्य’ चित्र यहां दिया है. वास्तव में विज्ञापनों, कलेंडरो, टीवी, पिक्चर आदि में जिस तरह के अनावृत स्त्री-चित्र दिखते हैं उनको सारथी पर नहीं दिखाया जा सकता. ऐसे कई केलेंडर भारत में उपलब्ध हैं जिनमें स्त्रियों के शरीर पर थोडे से धागों के अलावा और कुछ नहीं है. इन स्त्रियों को मारपीट कर, या जबर्दस्ती अगवा करके नहीं लाया गया बल्कि वे अपनी इच्छा से इन कलेंडरों के लिये पोज देती हैं. बल्कि आजकल इन लोगों में बडी होड लगी है कि कौन अपने आपको अधिकतम अनावृत कर सकती हैं.

यदि आप किसी प्रोफेशनल महाविद्यालय में चले जाये तो भी आपको लडकियां इस तरह की नुमाईश करती नजर आयेंगी कि आपकी आंखें शरम से झुक जायें. मेरे दोनों बच्चों के महाविद्यालयीन कार्यक्रमों में मैं ने यह बात नोट की थी. मैं ने अपनी बेटी से पूछा भी (हमारे घर में एक खुला माहौल है) कि लडकियां क्यों इस तरह अपने आप को अनावृत कर रही हैं तो उसने फट से उत्तर दिया कि डेडी वे लोग साफ कहते हैं कि एक मौका मिला है कि अपने पुरुष साथियों को "लुभाने" का. कैसा लुभाव — साफ है कि यौनाकर्षण द्वारा सिर्फ यौन-लुभाव ही पैदा होगा. Bharatnatyamयह न भूलें कि ये लडकियां अपने यौनाकर्षण को समझ कर अपनी इच्छा से अपने आप को अनावृत कर रहीं है. ऐसा करने के लिये किसी पुरुष ने उन पर दबाव नहीं डाला है. वे नर्सरी के बच्चे नहीं है, अत: वे यह भी जानती हैं कि यौनाकर्षण का अंतिंम पडाव क्या होता है


अब यदि स्त्रियां यह मांग करे कि उनकी नग्नता से पुरुष यौनाकर्षण जरूर महसूस करें लेकिन वे इसका असर अपने जीवन में न होने दे तो यह कैसे हो सकता है. आप हंडिया आग पर चढायें लेकिन यह मांग करते रहें कि पानी गरम न हो तो यह कैसे हो सकता है. यदि आप बारूद पर आग डालें एवं मांग करें कि विस्फोट न हो तो यह कैसी अनहोनी बात है.

आप पूछेंगे कि मैं बलात्कारियों का पक्ष ले रहा हूँ क्या. कदापि नहीं. मैं पहले ही कह चुका हूँ कि बलात्कार के लिये एक ही सजा होनी चाहिये और वह है मृत्युदंड या लिंगछेदन. स्त्री के साथ इतने नीच एवं क्रूर तरीके से पेशा आने वाले व्यकित को किसी भी तरह से बख्शा नहीं जाना चाहिये. वह दया का पत्र नहीं है.

लेकिन इस चित्र का एक पहलू और है जो हम सब को समझना चाहिये. वह है स्त्री की जिम्मेदारी का. मजे की बात यह है कि वे स्त्रियां जो अराजकत्व के स्तर तक "नारी-स्वतंत्रता" की वकालात करती है, वे यौनाकर्षण के मामले में स्त्रियों की सामाजिक जिम्मेदारी के बारे में मौन रहती हैं.

1 comment:

विभा रानी श्रीवास्तव said...


आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 5 मार्च 2016 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!